बिहार में लाखों युवक सरकारी नौकरी पाने की तैयारी करने के लिए मुस्सलमपुर हाट के क्षेत्र में पहुंचते हैं. इसे आप दिल्‍ली का मुखर्जी नगर मान सकते हैं, जहां लाखों युवक सरकारी नौकरी की तैयारी के लिए पहुंचते हैं. यहां एक छोटे से कमरे का किराया, 3 से 4 हजार रुपये तक होता है, जिसमें सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं मिलता. 
 
 
पटना:

सरकारी नौकरी पाना हर दूसरे युवक का सपना होता है... और इस सपने को यकीकत में बदलने के लिए युवक हर संभव प्रयास करते हैं. कई कठिनाइयों का सामना करते हैं. छोटे शहरों से निकलकर लाखों युवक बड़े शहरों में सरकारी पाने की तैयारी के लिए पहुंते हैं. इनमें ज्‍यादातर निम्‍न मध्‍यम वर्ग के युवक होते हैं. पैसों की किल्‍लत और जिम्‍मेदारियों का बोझ लेकर ये युवक बड़े शहरों में आते हैं, तो इनकी असली जंग शुरू होती है. हर दिन इन्‍हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. इन मुश्किलों को पटना के एक बेरोजगार युवक ने एनडीटीवी से बातचीत के दौरान कविता के रूप में पेश किया है.

"गउवा में बरका घर बाटे छोड़ के अइनी पटना में, अफसर बन के घर लौटब हम सोच के अइनी सपना में,
बोरिआ बिस्तर बांध के भैया निकल देहनी हम टांग के, आ माई हमार बड़ी खुश बारी, पांच हज़ार रूपया देहलू बाबू जी से मांग के,
पहला बेरी जब पटना अइनी, मनवा में लड्डू फूटत रहे, लेकिन दुनिया भर के गाड़ी देख के हम त बिलकुल चौंधिया गइनी, 8 बाई 10 के कमरा लेनी पटना के मुस्सलमपुर हाट में,
आ बत्तीस सौ ओकर किराया रहे, खाली एगो चउकी देनि साथ में, हम त बहुत चिंतित बानी, हमरा त कुछ समझ आवे ना, कईसे रहब एतना छोटा कमरा में केहू सही से बतावे ना,
रूमवा से बहार अइनी देह देह टकरावे ला, आ दुरिआ से देखला पर का कहीं भैया खाली छात्र के मूरी जनावे ला, इहवा त बहुत भीड़ है भैया देख के हम कन्फ्युजिआइल बानी,
आ छात्र आपन तकदीर लिखे ला भोर के चार बजे तक पढ़ तानी, केकरा इहवा सौख बाटे छोड़ के रहती गावें में, सब भाग दौड़ में लागल बानी आपन मंज़िल पावे में,
बहुत मेहनत करेला इहवा बुतरू तब जा के नौकरी मिलेला, जिला जवार सब खुश हो जाला, घरवा में भी खुशी के फूल खिलेला

कोई बनिहें रेल कर्मचारी कोई दरोगा इंस्पेक्टर हो, आ इहे उ बिहार के धरती बारे जे बहुते पैदा कइले कलेक्टर हो, दाल भात आ चोखा डेली खाये के पड़ी फिर भी नखरा दिखावे ना बहुत तकलीफ में रहेला इहवा बुतरू फिर भी आपन दुःख केकरो से सुनावे ना,
आपन दुःख केकरा से कहीं ओकरो बहुत याद सातवे ला आ जब जब किताब उलट के देखनी ऐ भैया किताब में ओकरे चेहरा नज़र आवे ला,
गउवा के बहुत याद सतावे ताल तल्लैया छूट गइल आ बहुत दिन ओकरा से ना मिलनी त प्यार भी हमसे रूठ गइल, एगो सरकारी नौकरी के खातिर दोस्ती यारी सब छूट गई आ डेली रोटी बेलते बेलते हाथवा के लकीरवा मिट गइल, माई हमर फ़ोन पर बतावे परोसी बहुते ताना सुनावेला, ऑफिसर बन के घर लौटीह बबुआ इन सबके सिख सिखावे ला...!"